अधिकतर संस्थाएं केवल शैक्षणिक पदों पर ध्यान देती देती है जबकि एक अच्छे संस्थान में गैर शिक्षक पदों पर कार्यगत कर्मचारियों का योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना कि शैक्षिक पदों पर कार्य कर रहे शिक्षकों का होता है। परंतु अधिकतर संस्थानों में मूल्यांकन के समय गैर शिक्षक पदों पर कर्मचारियों के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की जाती है न ही मूल्यांकन कर रही इन संस्थाओं के मूल्यांकन फॉर्मेट में इस तरह की जानकारी चाहिए होती है।
A, A++ रैंकिंग वाले राजधानी के कुछ संस्थान ऐसे भी है जहां पर पोस्ट ग्रेजुएट कर्मचारी 12 से 14 हजार में काम कर रहे हैं, जबकि एफिलिऐशन बॉडीज प्रत्येक वर्ष ईन संस्थानों का मूल्यांकन करती हैं। अन्य किसी प्रकार की कोई और सुविधा का लाभ भी कर्मचारियों को नहीं मिल रहा है।
राजधानी के कई हाईअर एजुकेशन कॉलेजों में कर्माचारियों को PF, ग्रेच्युटी आदि से भी दूर रखा है। कारण यह भी है कि अधिकांश संस्थान नेताओं के है या फिर नेताओं के सगे संबंधियों के हैं।
शिक्षा आज एक व्यवसाय बन चुकी है और शिक्षण संस्थान इसके केंद्र। शिक्षण संस्थाओं का जोड़ आज पढ़ाई पर काम एडमिशन पर ज्यादा रहता है अधिकतर प्राइवेट सस्ता साल भर कितने प्रोग्राम करते हैं उनमें से अधिकतर का मकसद केवल एडमिशन के लिए नए वर्ष में छात्र को प्रभावित किया जाए इसके लिए किया जाता है।
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